भारत निर्वाचन आयोग हमारे देश की वैधानिक संस्था है । लोक सभा तथा राज्यों की विधान सभाओ के चुनावो केक्षेत्रो का निर्धारण तथा उनके लिए मत देने वाले निर्वाचको की सूचियों की तैयारी का कार्य भी भारत निर्वाचन आयोग ही करता है। भारत निर्वाचन आयोग की मतदाता सूचिया विधान सभा क्षेत्र के भागवार होती है । एक भाग में एक ही गाँव या गाँव का कोई भाग, या एक से अधिक गाँव ; तथा इसी तरह शहर का कोई वार्ड या एक से अधिक वार्ड , या एक ही वार्ड का कोई भाग हो सकता है। सामान्य तौर पर एक भाग में १२०० तक मतदाता हो सकते है।
सविधान संशोधन के बाद राज्यों में पंचायती राज संस्थाओ के चुनाव प्रत्येक पांच वर्ष में कराना अनिवार्य हो गया है। पंचायत संस्थाओ में तीन स्तरीय चुनाव है - १- ग्राम पंचायते , २- खंड स्तर, ३- जिला स्तर। इसी प्रकार शहरी क्षेत्र के भी भी समय समय पर चुनाव करवाए जाते है। कुछ राज्यों जेसे कि राजस्थान ने राज्य निर्वाचन आयोग का गठन किया है। नगरीय तथा पंचायत संस्थायो के चुनाव करवाना तथा मतदाता सूचिया तैयार करवाना राज्य निर्वाचन आयोग का कार्यक्षेत्र है। ग्रामीण क्षेत्र क़ी मतदाता सूचिया , ग्राम पंचायत के वार्डो के अनुसार तथा शहरी , शहर के वार्डो के अनुसार बनाई जाती ही।
प्रत्येक लोक सभा, विधानसभा, नगर पालिका , नगर परिषद्, नगर निगम, पञ्च, सरपंच, उपसरपच पंचायत समिति , जिला परिषद् आदि के आम चुनाव अथवा उपचुनाव से ठीक पहले भारत निर्वाचन आयोग अथवा राज्य निर्वाचन आयोग अपनी अलग अलग मतदाता सूचिया बनाते है। इससे बड़ी संख्या में राजनीतिक लोग एक स्थान से दूसरे स्थान पर अपने अपने स्वार्थ के लिए नाम बदलवाते है। इस से भगवार मतदाताओ क़ी संख्या में भरी असंतुलन होने के अलावा अवैध मतदन को बढ़ावा मिलने के साथ साथ , सरकारी धन और समय क़ी अनावश्यक बर्बादी; तथा कानून और व्यवस्था क़ी समस्ये भी बढ़ जाती है।
कुछ सुझाव - 1
१- प्रत्येक केलेंडर वर्ष क़ी प्रथम जनवरी को मानक तिथि माना जावे।
२-केलेंडर वर्ष में होने वाले सभी चुनावो के लिए गत एक जनवरी क़ी सूची को ही विधिक मान्यता दी जावे
३- विधान सभा क़ी मतदाता सुची के प्रारूप में आंशिक संशोधन करके उसी को सभी प्रकार के निर्वाचनो के लिए विधिक मान्यता दी जावे.
सविधान संशोधन के बाद राज्यों में पंचायती राज संस्थाओ के चुनाव प्रत्येक पांच वर्ष में कराना अनिवार्य हो गया है। पंचायत संस्थाओ में तीन स्तरीय चुनाव है - १- ग्राम पंचायते , २- खंड स्तर, ३- जिला स्तर। इसी प्रकार शहरी क्षेत्र के भी भी समय समय पर चुनाव करवाए जाते है। कुछ राज्यों जेसे कि राजस्थान ने राज्य निर्वाचन आयोग का गठन किया है। नगरीय तथा पंचायत संस्थायो के चुनाव करवाना तथा मतदाता सूचिया तैयार करवाना राज्य निर्वाचन आयोग का कार्यक्षेत्र है। ग्रामीण क्षेत्र क़ी मतदाता सूचिया , ग्राम पंचायत के वार्डो के अनुसार तथा शहरी , शहर के वार्डो के अनुसार बनाई जाती ही।
प्रत्येक लोक सभा, विधानसभा, नगर पालिका , नगर परिषद्, नगर निगम, पञ्च, सरपंच, उपसरपच पंचायत समिति , जिला परिषद् आदि के आम चुनाव अथवा उपचुनाव से ठीक पहले भारत निर्वाचन आयोग अथवा राज्य निर्वाचन आयोग अपनी अलग अलग मतदाता सूचिया बनाते है। इससे बड़ी संख्या में राजनीतिक लोग एक स्थान से दूसरे स्थान पर अपने अपने स्वार्थ के लिए नाम बदलवाते है। इस से भगवार मतदाताओ क़ी संख्या में भरी असंतुलन होने के अलावा अवैध मतदन को बढ़ावा मिलने के साथ साथ , सरकारी धन और समय क़ी अनावश्यक बर्बादी; तथा कानून और व्यवस्था क़ी समस्ये भी बढ़ जाती है।
कुछ सुझाव - 1
१- प्रत्येक केलेंडर वर्ष क़ी प्रथम जनवरी को मानक तिथि माना जावे।
२-केलेंडर वर्ष में होने वाले सभी चुनावो के लिए गत एक जनवरी क़ी सूची को ही विधिक मान्यता दी जावे
३- विधान सभा क़ी मतदाता सुची के प्रारूप में आंशिक संशोधन करके उसी को सभी प्रकार के निर्वाचनो के लिए विधिक मान्यता दी जावे.
2 comments:
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Kewal Sarswat also commented on his status.
Kewal wrote: "आदरजोग अशोक जी आपका हार्दिक आभार इस बहुमूल्य जानकारी के लिये। आपके सुझाव निश्चित ही अमल मेँ लाये जाने योग्य है। एक बार पुनः शुक्रिया!"
Right thoughts
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