YOGASTH KURU KARMANI;
SANG TYAKTV DHANANJAY!
श्रीमद्भगवद्गीता के दूसरे अध्याय के ४८ वें श्लोक में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को कहा है -
योगस्थ कुरु कर्माणि; संग त्यक्त्वा धनजय !
THIS IS MY FAVOURATE LOGO FROM SHRIMADBHAGWADGEETA 2(48) LORD KRISHNA ORDERS ARJUN; TO PERFORM THE DUTY WITHOUT HESITATION; AVOID ALL ATTACHMENTS. IN 17(16) IDEAL SITUATION OF OUR MIND IS SHOWN AS १७ वें अध्याय के १६ वें श्लोक में श्री कृष्ण ने कहा है -
मनः प्रसादसौम्यत्व्म मौनमात्मविनिग्रह !
भाव संशुद्धि इत्येतद तपो मानसं उच्च्यते !!
MANH PRASAD SAUMYATVM MAUNAM ATM VINIGRAH !
BHAV SANSHUDDHI ITI ETAT TAPO MANASAM UCHYATE !!¤ CHEERFUL MIND मनः प्रसादः
¤ GENTLENESS सौमत्वं ¤ SILENCE TOWARDS GOD मौनं
¤ SELF CONTROL आत्म विनिग्रह
¤ INTERNAL PURITY भाव संशुद्धि
THESE ARE FIVE PRAYERS OF MINDLET WE DEVOTE *
उक्त पांचो मानसिक ताप कहलाते हैं *
आओ हम इनका अनुसरण करने का प्रयास करें ¤
JAISHRI KRISHNA जय श्री कृष्ण
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